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सौतेला शहर- Hindi Kahani | Hindi Story on our society

Emotional Hindi Story of Women

Emotional Hindi Story of Women
Emotional Hindi Story of Women

Hindi Story on our society में पढ़ें कैसे एक पराया शहर किसी को भी अपना बना लेता है।

सिर्फ लोगों के बीच आना जाना काफी नहीं है हमारे समाज में, बातचीत भी ज़रूरी है जिसके लिए आपको उनके जैसा बनना पड़ेगा ।

रीमा का मन काम में लगने लगा और अब उसे खालीपन भी महसूस नहीं होता था,एक दिन जब वो मंदिर जा रही थी तो उसने वो आर्टिकल भी साथ ले रखे थे जो उसने खुद लिखे थे क्यूंकि शेखर ने उसे कहा था कि वो खुद जाकर उस पत्रिका मालिक को दे आये तो रास्ते में उसकी टक्कर एक गाड़ी से हो जाती है और उसको चोट लग जाती है । उसके पर्स में से नंबर लेकर शेखर को फ़ोन किया जाता है और शेखर तुरंत हॉस्पिटल पहुँचता है तो रीमा बेहोश होती है ,थोड़ी देर में जब रीमा को होश आता है तो एक औरत अन्दर आती है और कहती है कि मैं यहाँ की हेड नर्स हूँ और रोज़ इनको मंदिर जाते हुए देखती हूँ क्यूंकि मैं भी वहीँ रहती हूँ I जब मैंने एक्सीडेंट वाली जगह पर इनको देखा तो तुरंत आपको फ़ोन किया और यहाँ ले आई इन्हें और हाँ ये एक फाइल थी जिसके पन्ने सड़क पर फ़ैल गए थे तो मैं इकट्ठा करके ले आई ।

रीमा की तरफ जैसे ही वो फाइल उस नर्स ने बड़ाई तो रीमा की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा वो अपना सारा दर्द भुला बैठी क्यूंकि चोट तो थोड़े दिन में ठीक हो जाती लेकिन ये उसकी मेहनत थी , अब उसने नर्स को थैंक्यू बोला और अब उसे ये “सौतेला शहर “ सही माएने में अपना लगने लगा था ।

Emotional Society Story in Hindi
Emotional Society Story in Hindi

रीमा को बहुत दुःख दिया था इस शहर ने फिर भी वो पता नहीं क्यूँ आज उसे अपना सा लग रहा था। रीमा बहुत दूर से इस शहर में रहने आई थी और उसका तौर तरीका इन शहर वालों से बिलकुल अलग था उसका चेहरा, उसकी भाषा, उसका चाल चलन सब दूसरों से अलग था ।

रीमा जब भी कहीं पार्क जाती या कहीं घूमने जाती तो सब लोग उसे ऐसे देखते जैसे कि वो कोई एलियन हो और कहीं दूसरे ग्रह से आई हो । रीमा की शादी जब शेखर से हुई थी और उसे पता चला था कि अब उसे बड़े शहर में शेखर के साथ रहना है तो उसने अपनी सारी सहेलियों को ये बात चहक चहक कर बतायी थी और सबने उसे कहा था कि इतने बड़े शहर में एडजस्ट होना इतना आसान नहीं है लेकिन उसे कहाँ समझ आई थी ये बात, उसे लगा था कि वो सब शायद उससे इर्ष्या कर रही हैं । शादी के इतने दिनों बाद भी शेखर के साथ वो अगर कहीं पार्टी में जाती तो सब उसे ऐसी नज़रों से देखते जैसे वो शेखर के लायक नहीं है , हालांकि शेखर ने कभी उसे ये चीज़  नहीं जताई लेकिन फिर भी उसे अच्छा नहीं लगता था ।

रीमा घर का सारा काम जानती थी और शेखर को अच्छी अच्छी डिशेस भी बना कर खिलाती थी, उसका एक नियम था कि वो शेखर के साथ साथ ही तैयार हो जाती और जैसे वो घर से निकलता वो भी उसके साथ साथ निकल जाती थी मंदिर के लिए । सिर्फ लोगों के बीच आना जाना काफी नहीं है हमारे समाज में, बातचीत भी ज़रूरी है जिसके लिए आपको उनके जैसा बनना पड़ेगा। रीमा ने कोशिश तो बहुत की उन जैसा बनने की लेकिन बन नहीं पायी ,वो दिखावे वाली स्माइल, वो उठने बैठने का तरीका और वो लगों के सामने कुछ और बोलना अपनापन जताना और लोगों के पीछे उनकी बुराई करना क्या था ये सब? समझ ही नहीं पा रही थी वो ,खैर उसने इन सब से दूर रहना ही ठीक समझा ।

धीरे धीरे उसका जीवन अपनी रफ़्तार पकड़ने लगा जब उसे लिखने का शौंक पड़ा , लिखती तो थी वो बचपन में भी कहीं कहीं कुछ कुछ लेकिन एक दिन जब वो मायके गयी हुई थी शेखर के हाथ एक dairy लग गयी जिसमें उन्हें उसकी लिखी बातें पढ़ने को मिलीं । शेखर ने अगले दिन ऑफिस में दोस्त से ये बात शेयर की तो उसने कहा कि भाभी को बोलो कुछ लिखना शुरू करें। जब रीमा मायके से वापिस आई तो शेखर ने उससे बात की तो वो तैयार हो गयी और शेखर के जाने के बाद उसने धीरे धीरे लिखना शुरू किया I शेखर का दोस्त एक पत्रिका के मालिक को जानता था तो उसने शेखर को उससे मिलवा दिया और शेखर ने रीमा के लिखे आर्टिकल उनको दिखाए तो उन्हें पसंद आये और उन्होंने वो पत्रिका में छाप दिए ।

कैसी लगी आपको Hindi Story on our society

अगर आप जानना चाहते हैं कि कैसे खुद में खुश रहा जाए तो सुनें https://www.youtube.com/watch?v=W3mWyxJWizQ&list=UUP-MXuuBMRwtojnklGmCZfw&index=2

Written by Geetanjli Dua