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Maa की लाइफ के पड़ाव|Heart Touching Story of Mother’s Life

Emotional Story of Motherhood

Emotional Story of Motherhood
Emotional Story of Motherhood

माँ-ये शब्द जेहन में आते ही कुछ खट्टे मीठे एहसास मन और दिमाग पर छा जाते हैं। एक बच्चा जिसने अभी जन्म लिया है, उसके लिए सही मायने में पूरी दुनिया है माँ। सारा दिन माँ ही उसे अपने  इर्द गिर्द घूमती नज़र आती है। यहाँ पिता के वजूद को न झुठलाते हुए मैं बस इतना कहना चाहूंगी कि पिता कहीं न कहीं चाहते न चाहते हुए बच्चे को वो समय नहीं दे पाता जो उस समय एक माँ अपनी रातों की नींद और दिन का चैन गँवा कर देती है। बच्चे की दिनचर्या ही कहीं न कहीं  उसकी दिनचर्या है और धीरे धीरे बच्चे का खाना जैसे खिचड़ी, दलिया, दाल ही उसका खाना बन जाता है। यह माँ के जीवन का वो पहला पड़ाव होता है जो  वह  हंसी ख़ुशी अपने बच्चे के लिए पार करती है।

अब माँ के जीवन के दुसरे पड़ाव की बात करते हैं जब बच्चा थोडा बड़ा हो जाता है ,अब बच्चे को धीरे धीरे दुनियादारी की समझ पड़ने लगती है और उसे दुसरे रिश्ते समझ आने लगते हैं जैसे दादा – दादी, नाना -नानी , मामा- मामी, चाचा – चाची। माँ की दुनिया ही उसके बच्चे तक सीमित होती है पर बच्चे को अब बाहरी दुनिया लुभावनी लगती है।धीरे -धीरे बच्चा स्कूल जाने लगता है , नए नए दोस्त बनाता है ,वहीँ माँ अब इंतज़ार करती है कि जिस बच्चे के सवालों के जवाब देते देते वो थक जाया करती थी, आज उसके सवाल पापा से ज्यादा होते हैं  और माँ से कम। पापा आज मुझे नयी क्रिकेट किट दिलाओगे ना  ? पापा आज मेरे दोस्त ने ये किया, आज मेरे दोस्त ने वो किया।माँ बस इंतज़ार करती है कि शायद उस बच्चे को अब एहसास होगा की माँ भी उससे बातें करने को बेताब है , माँ को भी  उसकी बातों सुनने की उत्सुकता है, पर वो माँ जिसकी दुनिया उसके बच्चे में सिमटी हुई थी वो शायद ये सोच कर संतोष कर लेती है कि मेरे बच्चे के चेहरे पर मुस्कान तो है न।

क्या उस वक्त उस बच्चे को एक कमी नहीं खलती कि जिस समय उसके पिता काम पर जाया करते थे तब माँ ही थी जिससे वो अपने मन की हर बात किया करता था और आज उससे जुडी हर बात पर पहला हक उसके पिता का है।

यहाँ से शुरू होती है एक माँ के तीसरे पड़ाव  की कहानी।अगर एक माँ हाउसवाइफ है तो उसे क्यूँ इंतज़ार करना पड़ता है कि बच्चे आएंगे और एक बार उससे कहेंगे कि माँ तुम हमारे लिए इतना काम करती हो, हम तुमसे बहुत प्यार करते हैं।तुम घर पर बोर हो जाती होगी, चलो हम तुम्हारी कुछ मदद करते हैं  ताकि तुम किसी काम में व्यस्त हो सको।यह इंतज़ार कुछ पल का नहीं बल्कि हमेशा का हो जाता है क्यूंकि माँ के जीवन में इंतज़ार के सिवा कुछ नहीं लिखा होता, फिर चाहे वो  बच्चों के स्कूल से आने का हो, कॉलेज से आने का ,नौकरी से रात को लेट आने का या फिर शादी के बाद घर आने का।इंतज़ार, इंतज़ार और बस इंतज़ार!!

अगर माँ वर्किंग  हो तो शायद उसके मायने कुछ और हो जाते हैं। जी नहीं , यहाँ भी आप गलत है, वही बच्चे जिनके लिए माँ ने सेक्रिफाईस किये होते हैं मैटरनिटी लीव के नाम पर , अब वो बच्चे इतने बड़े हो चुके होते हैं कि माँ को कह सके कि नौकरी करने की क्या जरुरत है  घर रहो।

कुछ दिनों पहले मेरी दोस्त ने बताया कि उनके पड़ोस में एक लेडी टूशन पढाती है पर वो नौकरी नहीं करती क्यूंकि उसकी लड़की ने उसे नौकरी नहीं करने दी। मेरे लिए ये वाक्या एक अचम्भे से कम नहीं था जहां मैंने ये सुना था कि पति , सास, ससुर ने नौकरी नहीं करने दी वहां ये मेरी जानकारी में पहला किस्सा था।मेरा सवाल उस लड़की से ये है कि क्या वो शादी के बाद अपनी माता जी को दहेज़ में ले जाने वाली है या वह खुद शादी के बाद नौकरी कभी नहीं करेगी ?अगर इसका जवाब ना है तो क्यूँ एक माँ को वह फ्रीडम नहीं दी जाती कि वह अपनी जिंदगी का फैसला खुद ले सके।उन बच्चों को यह हक किसने दिया कि वो अपनी माँ के लिए सही गलत का चुनाव करें जब उन्होंने ही अभी माँ शब्द के दायरे में कदम ही नहीं रखा।

खैर अब हम माँ के जीवन के आखरी पड़ाव की बात करते हैं , जब बच्चे बड़े हो जाते हैं और उनकी नौकरी लग जाती है या शादी हो जाती है तो वह अपनी माँ से बातें करना बिलकुल कम कर देते हैं। शायद उस समय उन्हें वह रोक टोक ज्यादा नहीं भाति पर वह ये क्यूँ भूल जाते हैं कि अगर वह हक़ से अपनी माँ के लिए कुछ फैसला ले सकते हैं तो उसी हक़ से अपनी माँ को समय के साथ बहना और छोटी मोटी बातों को इगनोर करना भी सिखा सकते हैं क्यूंकि माँ तो आखिर माँ होती हैं।

एक बेटी अपनी माँ से इस पड़ाव पर बात कम करे तो समझ लेना दोस्तों कि कुछ दर्द है जो माँ से छुपाना चाहती है वो , डरती है कहीं दरारों के पीछे का दर्द न झलक जाए उसे !!पर उस आईने(माँ)  को अँधा क्यूँ समझ लेती है वो!! माँ वो है जो सिये होठों का दर्द जानती है , माँ वो है  जो दूर है पर हर अश्क वहीँ से पहचानती है !!माँ कहती है बेटी तू सयानी है भले, पर मेरी परछाई है तू, ये क्यूँ नहीं मानती है !!

एक बेटा अपनी माँ से कम बात करे तो समझ लेना दोस्तों कुछ बात है जो संभालना चाहता है वो।

“माना थक कर उसकी आँखें बंद होती हैं, पर माँ सोती है तो भी फिक्रमंद होती है “!

Written by Geetanjli Dua